बॉडी-शेमर

"बॉडी-शेमर" अगर तू मिट्टी की होती, अपने हाथों से तराशता, तेरे अंदर को नहीं, केवल काया को सुधरता। कहते हैं सब, प्रेम नहीं वो जो सिर्फ जिस्म से हो, पर खुश नहीं ऐसे मैं, ये कैसा प्यार जिसमे घुटन सी हो? कैसे समझूँ, जाओ मैं नहीं मानता किसीकी, कि मैं गलत हूँ। सोचने दो, हाँ मैं घमंडी, संकीर्ण मानसिक्ता वाला पुरुषसत्तावादी हूँ। लोगों को नहीं समझाना है, वो कहाँ समझेंगे? कहने से तुम्हे भी कहाँ पीछे हटेंगे - सामने नहीं तो पीछे कहेंगे तुम्हारे बारे में। टिप्पणियां काटेंगे, कहेंगे तुम्हे, जो मुझे नहीं सुनना। क्या वे पहचानेंगे क्या है तुममे? मैं तो चलो उनलोगो को भुला भी दूँ , तुम्हारा शर्म सह भी लूँ। पर जो बीमारियां ले आएंगी ये मेद, मैं ये कैसे भूलूँ? वसा के आवरण मैं रहने दूँ तुम्हे, ये मेरा प्यार नहीं मानता आज वो कहते हैं, प्यार रंग-रूप नहीं देखता, सामने वाला क्या जनता? कैसे माँ अपने बच्चों को बीमार देख सकती है? वैसे ही मैं, तुम्हे स्थूल कैसे बने रहने दूँ? मेरे प्यार में तुम्हारे प्रति क्या अनासक्ति है? हिम्मत मत हारना, हाँ, कष्ट भी...